आज 22 जनवरी 20 से 22 है शनिवार का दिन है अजीब सा एक माहौल है ,बादल है, बारिश है। सर्दी है और यहां अपने परिजनों से अपने बाल बच्चों से दूर बैठा हूं कुछ काम कुछ अच्छा करके किसी संस्था को देने की सोच में ।
इंसान खुद कितना चाहे की किसी को कुछ दे सके, लेकिन ज्ञान एक ऐसी चीज है जिसको देना और स्वीकार करना दोनों ही बड़ा मुश्किल है ,देने वाला किस तरह से ज्ञान देता है और लेने वाले को क्या समझ में आता है उस ज्ञान से, इस पर इस बदला बदली का असर होता है ,यह कितना सफल हुआ उसके परिणामों से पता चलता है जो कि समय के साथ आते हैं। अभी तत्काल इसमें कुछ नहीं होता।
मैं खुद ही अभी बहुत कुछ नहीं जानता था इस सारे कार्य को करने में ,इस परिपेक्ष में विश्वविद्यालय के परिपेक्ष में यहां आकर बहुत कुछ सीखा और समझा कि कहनीऔर कथनी में कितना फर्क या कितनी दूरी है ,एक बात यह कहना कि खेल को बढ़ावा देना है क्योंकि युवा वर्ग जो है वह नशे की तरफ जा रहा है या इंटरनेट से खराब हो रहा है और दूसरी तरफ उसको एक धंधे की तरह चलाना खेल को ,बहुत ही दुखद है और बिलकुल ही विपरीत है कथनी में और करनी में।
पर मुझे कुछ तो करना है और अच्छा ही करूंगा, जीवन के 35 वर्ष ऐसे ही नहीं निकाले, हर परिस्थिति में काम किया है और इस संस्था को भी कुछ ना कुछ करके दूंगा ,जो विद्यार्थियों और युवाओं के लिए एक अच्छा मार्गदर्शन होगा और अच्छे खिलाड़ी और फिजिकल एजुकेशन शारीरिक शिक्षा के बच्चे यहां से निकलेंगे।